रक्षा बंधन विशेष

रक्षा बंधन विशेष

म्हारा बीरा ने देईजो लम्बी उमर, बस ईतरी अरदास करू थासूं

          रक्षा बंधन विशेष – म्हारा बीरा ने देईजो लम्बी उमर, बस इतरी अरदास करू थासु- एक बहन द्वारा भगवान् से अपने भाई के लिए की गयी प्रार्थना है, रक्षाबंधन का त्यौहार श्रद्धा, स्नेह व प्रेम भाव का सात्विक रूप है। रक्षा बंधन के दिन जहाँ बहन भाई को राखी बांधती है वही रक्षासूत्र  बांधने पर भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है।

भाई की लम्बी उम्र के लिए बहन रखती उपवास

          बहन रक्षाबंधन से एक दिन पूर्व यानि श्रावन मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भाई की लम्बी उम्र के लिए उपवास रखती है। इस उपवास के दिन बहन तब तक अन्न ग्रहण नहीं करती जब तक उसका भाई बहन के लिए भोजन लेकर नहीं आता। उपवास को आंचलिक भाषा में वीरफुली कहा जाता है। यह परम्परा आज भी ग्रामीण अंचलों में प्रचलित है।

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वीरफुली के नारियल का महत्व

          रक्षा बंधन का पर्व वर्षा ऋतु में आता है, इसलिए अधिक बारिश होने के कारण कई बार भाई अपनी बहन के लिए समय पर भोजन नहीं पंहुचा पाता है, अतः बहन उपवास नहीं खोल पाती है, तो ऐसी स्थिति से बचने के लिए भाई अपनी बहन के लिए वीरफुली के नारियल के रूप में कुछ दिन पहले ही पैसे भेज देता है।  पैसे देने का तात्पर्य है कि उपवास के दिन बहन उन पैसों से मिठाई खरीदकर लाती है और उस मिठाई को भोजन के रूप में ग्रहण करती है एवं उपवास समाप्त करती है। वीरफुली के भोजन के रूप में गेंहू के आटे कि बनी हुई सेवें, घेवर एवं मोतिसूर (बूंदी) के लड्डू को विशेष महत्व दिया जाता है।

          ऐसा कहा जाता है कि भाई के हाथो ही बहन उपवास खोलती थी लेकिन आज के समय में व्यस्तता के चलते वीरफुली कि वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में भाई अपनी बहन को पहले ही पैसे भेज देता है। बहन न केवल उपवास रखकर अपनी औपचारिकता निभाती है बल्कि अपने भाई कि लम्बी उम्र की कामना करते हुए रीती-रिवाज से पूजा-पाठ करके उपवास खोलती है।

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