पड़ोसी धर्म-एक सीख

पड़ोसी धर्म-एक सीख

पड़ोसी धर्म-एक सीख – रवि की एक बड़ी कंपनी में नौकरी थी। उसने शहर में नया-नया मकान बनाया था। लेकिन उसे कंपनी के कार्य से अधिकतर अपने शहर से बाहर जाना पड़ता था। कॉलोनी में आस-पास के लोग उच्च जीवन स्तर तथा गाड़ी बंगलो वाले थे। लेकिन रवि के बाजू में मोहन का एक छोटा सा मकान था।

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मोहन ऑटो रिक्शा चला कर परिवार का जीवन यापन करता था। कॉलोनी के अधिकतर लोग उसे हीन दृष्टि की भावना से देखते थे। रवि और उसकी पत्नी नेहा अन्य पड़ोसियों  के साथ अच्छा व्यव्हार रखते थे। एक दूसरे के वहां आना-जाना एवं चाय-पार्टी में जाना, बुलाना आम बात थी।

जबकि रिक्शा वाले के प्रति यह दोनों भी दूसरों की तरह रुखा व्यव्हार ही करते थे। मोहन के नमस्कार करने पर भी रवि सीधे मुँह जवाब नहीं देता था। और नेहा भी उसकी पत्नी से बात करने में संकोच करती थी।

गर्भवती रवि की पत्नी

एक दिन रवि को कंपनी के काम से बाहर जाना पड़ गया। और उस वक्त नेहा गर्भवती थी। जबकि उसका पति उसे अकेला छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहता था। परन्तु एक दिन की ही तो बात है यह सोचकर निकल गया।

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दूसरे दिन प्रातः 5 बजे नेहा को प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी। वह दर्द से कराहती हुई जैसे-तैसे दरवाजे तक पहुंची। उस वक्त मोहन की पत्नी अपने घर के बाहर झाड़ू लगा रही थी। वो नेहा को इस हालत में देख कर सारा माजरा समज गयी। उसने मोहन को उठाया और वो अपने रिक्शा में उसे अस्पताल ले गए।

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अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने नेहा को तुरंत भर्ती कर लिया। गर्भवती को खून की कमी थी, चिकित्सक के कहने पर मोहन ने अपना ब्लड दिया। फिर कुछ समय बाद नर्स ने नेहा के पुत्र होने की बधाई दी। मोहन और उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुए।

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मोहन ने निभाया पड़ोसी धर्म

मोहन ने रवि को फोन लगाकर यह ख़ुशी का समाचार सुनाया। रवि के हॉस्पिटल पहुंचने पर नेहा ने मोहन और उसकी पत्नी ने जो पड़ोसी धर्म निभाया वो पूरा वाकया सुनाया। और कहा आज मुश्किल वक्त में बड़े-बड़े लोग और उनकी बड़ी-बड़ी गाड़िया काम नहीं आयी।

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वो पल बड़े भावुक थे जिस समय रवि ने मोहन के पांव पकड़ लिए और माफ़ी मांगी। और कहा में तुम्हारा ऋणी हू और उससे किये दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी मांगी। तब मोहन ने कहा अरे भैयाजी मैने कोई एहसान नहीं किया है। मैने तो सिर्फ अपना पड़ोसी धर्म निभाया है। उस समय रवि और नेहा की आँखों में पश्चाताप के आंसू थे।

“विचार और व्यव्हार हमारे बगीचे के वो फूल है,

जो हमारे पुरे व्यक्तित्व को महका देता है”

 

!! इंसानियत दिल में होती है,

हैसियत में नहीं !!

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