भगवान गणेश: पौराणिक कथाओं के आदर्श पुत्र

भगवान गणेश: पौराणिक कथाओं के आदर्श पुत्र

भगवान गणेश: पौराणिक कथाओं के आदर्श पुत्र है भारतीय संस्कृति में गणपति जी का विशेष महत्व है। वे विद्या के पत्रक हैं, तथा विघ्नहर्ता के रूप में जाने जाते है। जिनका आशीर्वाद सभी कार्यों को साधने में मदद करता है। इसके अलावा गजानंद जी की कहानी और महत्वपूर्ण श्रृंगारिक विशेषताओं वर्णन इस लेख के माध्यम से जानिए।

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          गणेश जी का विशेष स्वरूप भारतीय संस्कृति में अद्वितीय है। उनके शरीर का एक हाथ हाथी के समान होता है, जिसका अर्थ है कि वे बड़े गुणों के साथ सम्पन्न हैं। गणपति जी के दो बड़े कान विचारशीलता का प्रतीक हैं। और विनायक के विशाल मुख का अर्थ है कि वे सभी कठिनाइयों को अपनी दिव्य शक्तियों से हल करते हैं।welcome to sabtakblog

          गणेश जी का वाहन मूषक होता है: जो कि हमारे मन की छोटी बड़ी विचार वृत्तियों का प्रतीक होता है। यह दिखाता है कि विनायक जी हमारे मन को अपने नियंत्रण में रखने में सक्षम हैं। और हमारे मानसिक स्थिति को शांति और स्थिरता की और पहुँचाते हैं। अतः गणपति जी का वाहन भी सामान रूप से महत्वपूर्ण है।

गणपति चतुर्थी एक महा महोत्सव

          गणेश चतुर्थी महोत्सव: जो भारत में हर साल बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणपति जी के जन्म के उपलक्ष में मनाया जाता है। और फिर इसका समापन भादवा सुदी चतुर्दशी को गजानंद जी के विसर्जन के साथ होता है। यह उत्सव विनायक जी के प्रति विशेष भक्ति और समर्पण का एक महापर्व है। इस अवसर पर लोग गणेश की मूर्तियों को घर में लाते हैं। तथा पूजा करते हैं और उनके बड़े आगमन का स्वागत करते हैं। फिर उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन लोग विशेष रूप से मोदक, जो गजानंद जी की पसंदीदा मिठाई हैं को बनाते है और बाँटते हैं।

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          इस प्रकार, गणेश जी भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण देवता हैं। और उनके पूजन से हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। गणपति जी की कथाएँ और महत्व हमारे जीवन में अद्वितीय मार्गदर्शक होते हैं। जो हमें आदर्श पुत्र और मनस्य के रूप में आदर करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसलिए विनायक जी की  महिमा हमारे जीवन में अमूल्य हैं। और फिर हमें भगवान की पूजा करके उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना चाहिए।

श्री गणेश की अद्भुत एवं रहस्यमयी  जन्म कथा

          श्री गणेश की जन्म कथा भी उनकी ही तरह अद्भुत, रहस्यमयी और अलौकिक है। इनका जन्म माता पार्वती के गर्भ से नहीं हुआ था। बल्कि माता पार्वती ने उन्हें अपने तन के मैल से निर्मित किया था। भगवान गणेश ने नवजात शिशु के रुप में जन्म नहीं लिया था, अपितु जन्म ही बाल रुप में लिया था।

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gauri putra ganesh

          जब गणपति का जन्म हुआ तब उनका शीश गज जैसा नहीं था, अपितु सामान्य सिर ही था। जन्म देने के बाद माता पार्वती स्नान करने चली जाती है। और पुत्र गणेश को आज्ञा देती हैं, कि कोई भी अंदर प्रवेश न करे। गणपति ने अभी तक सिर्फ अपनी माता को ही देखा था।

          गणेश जी अपनी माता की आज्ञा का पालन करने हुए देवी माँ के महल के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर पहरेदारी करने लगे। इतने में पिता महादेव आ गये और अंदर जाने लगे। जबकि पिता और पुत्र दोनों एक दूसरे से अनभिज्ञ थे।

गणेश ने भगवान महादेव को माता पार्वती के महल में जाने से रोका

जब महादेव आये और महल में प्रवेश करने लगे तो गणेशजी ने भगवान शिव को अंदर जाने से रोक दिया। शंकरजी ने गणपति को बहुत समझाया कि वो माता पार्वती के स्वामी है। पर नादान बालक ने एक न सुनी और आखिरकार क्रोध में आकर भगवान शिव ने बाल गणेश का सिर काट दिया। अब क्या था, जैसे माता पार्वती स्नान कर बाहर आयी तो अपने बच्चे को सिर कटा शव देखा। वो क्रोध और दुःख से अत्यंत व्याकुल हो उठी।

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          माँ पार्वती ने शिव से अपने बच्चे को पुनः जीवित करने का वरदान माँगा। माँ देवी ने कहा की यह बच्चा तो केवल अपनी मां की आज्ञा का पालन कर रहा था। तब श्रीहरि विष्णु ने हाथी का शीश लाकर भगवान महादेव को दिया और शिवजी  ने गज के सिर को गणेश की गर्दन पर लगाकर बालक को पुनः जीवित कर दिया। अपनी मां के प्रति इतनी अटूट भक्ति देखकर महादेव सहित सभी देवी-देवताओं ने गौरीपुत्र को आशीर्वाद दिया। और साथ ही पिता महादेव ने प्रथम-पूज्य का होने का आशीर्वाद दिया।

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