लंकापति रावण के गुण (About Ravan)

लंकापति रावण के गुण

लंकापति रावण के गुण– पौराणिक पात्रों में लंकापति एक ऐसा पात्र है, जो मानव जीवन से जुड़ा है। कोई भी व्यक्ति जो थोड़ा क्रूर या क्रोधी स्वाभाव का होता है, तो उसकी तुलना हम लंकेश्वर से कर देते है। लेकिन सत्य यह  है की दशानन जितना दुष्ट था उससे ज्यादा उसमे खूबियां थी। शायद इसीलिए कई बुराइयों के बावजूद भी उसे महान विद्वान और प्रकांड पंडित माना जाता है।

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रावण, भगवान शिव से युद्ध हारकर, महादेव को अपना गुरु बना लिया था। लंकापति ज्योतिष तो था ही साथ ही वो तंत्र-मंत्र एवं आयुर्वेद का भी महान विशेषज्ञ था। लंकेश्वर संगीत का बहुत बड़ा जानकार था।

माँ सरस्वती के हाथ में जो वीणा है, उसका आविष्कार भी लंकापति ने किया था। रामचरितमानस में तुलसीदास लिखते है कि रावण के दरबार में सारे देवता और दिग्पाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे।

रावण की अशोक वाटिका

रावण के महल में अशोक वाटिका थी। जिसमें 1 लाख से ज्यादा वृक्ष थे। तथा उस वाटिका में लंकेश्वर के अलावा अन्य किसी को जाने की अनुमति नहीं थी।

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रावण ने इसी वाटिका में माता सीता को हरण करने के पश्चात् बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है की एलिया पर्वत क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था। लंका में उस क्षेत्र को आज सीता-एलिया के नाम से जाना जाता है। तथा इसी स्थान पर माता सीता के नाम पर एक मंदिर भी है।

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जब रावण युद्ध के लिए निकलता था तो स्वयं बहुत आगे चलता था बाकी सेना पीछे होती थी। लंकापति ने यमपुरी जाकर यमराज को भी हरा दिया था। और नर्क की सजा भुगत रही जीवात्माओं को मुक्त करवा कर अपनी सेना शामिल कर लिया था।

बाली और रावण का युद्ध

किष्किंधा के राजा बाली, भगवान इंद्र के पुत्र थे। राजा को भगवान ब्रह्मा से एक वरदान प्राप्त था। जिससे बाली को युद्ध के दौरान अपने प्रतिद्वंद्वी की आधी ताकत हासिल होती थी। इसलिए राजा बाली को हराना असंभव हो गया था। बाली का भाई सुग्रीव भगवान सूर्य का पुत्र था।

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बाली की शक्ति के बारे में पता चलते ही रावण को उससे ईष्या हो गई। और उसने किष्किन्धा जाकर उसको युद्ध के लिए ललकारा। तब दैत्य राजा के महल में खेल रहे बच्चो ने लंकेश्वर को पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध लिया।

इसके बाद लंकापति और बाली के बीच भीषण युद्ध हुआ। वरदान के कारण रावण की आधी शक्ति बाली के भीतर प्रवेश कर गई। जिससे वह और भी शक्तिशाली हो गया। और लंकेश्वर  की हार निश्चित हो गई। बाली ने लंकेश्वर को अपनी बाजू में दबाकर चार समुद्रों  की परिक्रमा की थी।

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शास्त्रों की बात लंकापति का विनाश

जब रावण विजय अभियान से लौट रहा था। तब रावण के पुष्पक विमान पर अनेक अपहृत सुंदरियां सवार थी। जो सभी विलाप कर रही थीं। उनका विलाप सुन कर रावण प्रसन्न हो रहा था।

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परम साध्वी एक ऋषि पत्नी ने उसे श्राप देते हुए कहा, ‘‘ हे पापी दुराचार के पथ पर चल कर भी स्वयं को नहीं धिक्कारता। स्त्रियों के हरण का पराक्रम तुम्हारी वीरता के सर्वथा प्रतिकूल है। पर-स्त्रियों के साथ बलपूर्वक दुराचार करने का दोषी रावण तुम पांडित्य का अधिकारी हो नहीं हो सकता है। मैं तुझे श्राप देती हूं कि पर-स्त्री का अपहरण ही तेरे वध का कारण बनेगा’’।

रावण की शक्ति उसी समय से कम होने लगी। वह निस्तेज होने लगा। ऐसी ही स्थिति में रावण ने लंका में प्रवेश किया। वहां और भी दुर्भाग्यजनक समाचार उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जो आगे जाकर उसके नाश का कारण बने।

विभीषण द्वारा रावण की निंदा करना

विभीषण द्वारा रावण की निंदा करना और यह कहना, ‘‘राक्षसराज! आप पुलस्त्य ऋषि की संतान हैं। पर-स्त्री का अपहरण आपके लिए उचित नहीं”। और दूसरा कारण शूर्पणखा और लक्ष्मण के मध्य हुई घटना।

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इस प्रकार रावण भीतर से भयभीत था। फलस्वरूप वह सीता जी के साथ बलपूर्वक व्यवहार नहीं कर सका। रावण की सबसे बड़ी विवशता ऋषि-पत्नियों का श्राप था। इसलिए अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे सीता जी सुरक्षित रहीं।

!! बुराई छोटी हो या बड़ी, हमेशा विनाश का कारण बनती है।

क्योंकि नाव में छेद छोटा हो या बड़ा नाव को डूबा ही देता है !!

रावण का परिवार

रावण लंका में राक्षसों का राजा था। वह पुलस्त्य ऋषि का पुत्र तथा शिव और ब्रह्मा का परम भक्त था। लंकापति की पत्नी-मंदोदरी, भाई विभीषण, कुम्भकर्ण, महोदर और महापार्श्व थे। तथा बहन शूर्पणखा थी। लंकेश्वर के सौतेले भाई – खर और दूषण थे।

दशानन के 7 पुत्र – इंद्रजीत (मेघनाद), अक्ष, अंकपन, देवान्तक, नरान्तक, त्रिशीर्ष और अतिकाय थे। लंकेश्वर का सेनापति – प्रहस्त था। लंकिनी – लंका की नगर रक्षिका देवी थी।

लंकेश्वर का विनाश

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लंकेश्वर जब रणभूमि में  मृत्यु शैय्या पर अंतिम साँसे ले रहा था। तब उसने श्री राम से कहा की राम में तुमसे हर बात में श्रेष्ठ हू। जाती मेरी ब्राह्मण जो तुमसे श्रेष्ठ है। आयु में तुमसे बड़ा हू। मेरा कुटुंब तुम्हारे कुटुंब से बड़ा है। मेरा वैभव तुमसे अधिक है। राम तुम्हारा तो सिर्फ महल स्वर्ण जड़ित है। परन्तु मेरी तो पूरी लंका  स्वर्ण नगरी है। में बल और पराक्रम में तुमसे श्रेष्ठ हू। मेरा राज्य तुम्हारे राज्य से बड़ा है। ज्ञान और तपस्या में भी में तुमसे श्रेष्ठ हू।

इतनी श्रेष्ठता होने के बावजूद भी मै रणभूमि में श्रीराम से परास्त हो गया। परम साध्वी एक ऋषि पत्नी ने द्वारा दिया हुआ श्राप। और विभीषण द्वारा रावण की निंदा करना और यह कहना, ‘‘राक्षसराज! आप पुलस्त्य ऋषि की संतान हैं। पर-स्त्री का अपहरण आपके लिए उचित नहीं”। इसलिए लंकापति का विनाश हुआ।

 

 

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